samajwad aur samyavad subjective question
समाजवाद और साम्यवाद (samajwad aur samyavad ke important questions) जैसे महत्वपूर्ण इतिहास विषयों के अध्ययन को आसान बनाने के लिए हम आपके लिए चैप्टर-वाइज महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्नों का संकलन लेकर आए हैं। यहां आपको लघु उत्तरीय और दीर्घ उत्तरीय (Short And Long Question Answer) दोनों प्रकार के प्रश्न उपलब्ध कराए गए हैं, जिससे आप परीक्षा में सभी प्रश्नों का उत्तर आसानी से दे सकें। यह प्रश्न न केवल प्रत्येक चैप्टर की गहराई से समझ के साथ तैयार किए गए हैं, बल्कि इनमें पिछले कुछ वर्षों में पूछे गए महत्वपूर्ण प्रश्न भी शामिल किए गए हैं। इस प्रकार का मॉडल सेट आपकी तैयारी को प्रभावी बनाने और आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करेगा, ताकि आप परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें।
इतिहास के दूसरे अध्याय में आपको समाजवाद और साम्यवाद (samajwad aur samyavad ke important questions) के बारे में पढ़ने को मिलता है। इस अध्याय में पूंजीवाद का अर्थ, ‘खूनी रविवार’ जैसी घटनाओं का विवरण, अक्टूबर क्रांति का इतिहास, सर्वहारा वर्ग की भूमिका और क्रांति से पहले रूस की स्थिति पर चर्चा की गई है। साथ ही, रूसी क्रांति के विभिन्न चरणों का भी वर्णन किया गया है। इस पाठ में बताया गया है कि किस प्रकार साम्यवाद एक नई आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था थी, जो समाज में समानता और न्याय की स्थापना का लक्ष्य रखती थी। यह विषय परीक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस पर अक्सर 2 या 5 अंकों के सब्जेक्टिव प्रश्न पूछे जाते हैं। इसलिए, इस अध्याय को गहराई से समझना आवश्यक है।
history me samajwad aur samyavad ke questions
- अतिलघु उत्तरीय प्रश्न : ( 20 शब्दों में उत्तर दें )
प्रश्न-1. पूँजीवाद क्या है?
उत्तर:- पूँजीवाद एक ऐसा व्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साधनों, कारखानों आदि पर पूँजीपतियों का एकमात्र अधिकार होता है। ऐसी व्यवस्था में पूँजीपतियाँ अपने निजी लाभ के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन करता है और मजदूरों पर कोई विशेष ध्यान नहीं देता है, जिससे मजदूरों की स्थिति दयनीय हो जाती है।
प्रश्न-2. खूनी रविवार क्या है?
उत्तर:- 22 जनवरी 1905 (पुरान कैलंडर के अनुसार 9 जनवरी, 1905) को लोगों का एक समूह “रोटी दो” का नारा लगाते हुए सेंट पीटर्स वर्ग स्थित महल की ओर जा रहा था। जहाँ जार की सेना ने इन निहत्थे लोगों पर अंधाधुन गोलियां चलाया जिससे हजारों लोग मारे गए। क्योंकि यह घटना रविवार के दिन हुआ था इसलिए इस
दिन को “खूनी रविवार” कहा जाता है।
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प्रश्न-3. अक्टूबर की क्रांति क्या हैं?
उत्तर:- नय कलडर के अनुसार अक्टूबर का क्रांति 7 नवंबर 1917 ई0 को रूस में हुई थी। लेकिन पुरानी रूसी कैलेंडर के अनुसार वह दिन 25 अक्टूबर 1917 ई0 था। क्योंकि पुरानी रूसी कैलेंडर के अनुसार यह क्रांति अक्टूबर महीने में हुआ था, इसलिए यह क्रांति ” अक्टूबर की क्रांति” कहलाई। इस क्रांति के बाद शासन की बागडोर बोल्शेविकों के हाथ में आ गयी।
प्रश्न-4. सर्वहारा वर्ग किसे कहते हैं?
उत्तर:- सर्वहारा वर्ग श्रमिकों का एक ऐसा वर्ग हैं जिसमें किसान, मजदूर एवं आम गरीब लोग आते हैं। इस वर्ग को कोई विशेष सुविधा एवं अधिकार प्राप्त नहीं होता है। यह वर्ग पूँजीपतियों द्वारा शोषित वर्ग है। पूँजीपतियों द्वारा शोषित होने के कारण इनकी की स्थिति काफी दयनीय हो गई है।
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प्रश्न-5. क्रांति से पूर्व रूसी किसानों की स्थिति कैसी थी?
उत्तर:- रूस के बहुसंख्यक लोग किसान थे फिर भी क्रांति से पूर्व रूस के किसानों की स्थिति काफी दयनीय थी। जार एलेक्जेंडर द्वितीय द्वारा किया गया विभिन्न प्रयासों के बाद भी उनके स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पाया था। उनके पास पूँजी का अभाव था। उनके खेत बहुत छोटे-छोटे थे, जिन पर वे पुराने ढंग से खेती करते थे।
प्रश्न- रूसी क्रांति के किंही दो कारणों का वर्णन करें।
(i) जार का निरंकुश एवं अयोग्य शासन:- जार का शासन अफसरशाही था जो जनताओं के समस्याओं को समाधान नहीं कर पा रहा था।
(ii) मजदूरों की स्थिति दयनीयः – जार के शासन में मज़दूरों को कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं था जिससे मजदूर जार के शासन के प्रति संतोष नहीं थे।
- लघु उत्तरीय प्रश्न :- (60 लगभग शब्दों में उत्तर दें )
प्रश्न-1. रूसीकरण की नीति क्रांति हेतु कहां तक उत्तरदायीं थी?
उत्तर:- रूसीकरण की नीति क्रांति हेतु प्रमुख उत्तरदायीं था क्योंकि रूसीकरण की नीति द्वारा रूस के विभिन्न जाति, धर्म एवं भाषा के लोगों पर रूस का भाषा, शिक्षा और संस्कृति को लादने का प्रयास किया जा रहा था। इस नीति से असंतुष्ट लोग क्रांति के लिए प्रमुख कारण बना था।
प्रश्न-2. साम्यवाद एक नई आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था थी कैसे?
उत्तर:- रूस में साम्यवाद एक नई आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था थी क्योंकि
(i) देश में सामाजिक असमानताओं को समाप्त कर दिया गया।
(ii) जमींदार एवं पूंजीपति वर्ग का बोल-बाला समाप्त कर दिया गया।
(iii) काम के अधिकार को संवैधानिक अधिकार बना दिया गया।
(iv) देश के पूरे संपत्ति का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
प्रश्न-3. नई आर्थिक नीति मार्क्सवादी सिद्धांत के साथ समझौता था कैसे?
उत्तर:- नई आर्थिक नीति- 1921 के अंतर्गत लेनिन ने ‘मार्क्सवादी सिद्धांतों के साथ समझौता कर इसे रूस में लागू किया था क्योंकि पूरे देश (रूस) में एक साथ समाजवादी व्यवस्था को लागू करना या सभी पूंजीवादी देशों से टकराना असंभव था। इस प्रकार नई आर्थिक नीति को मार्क्सवादी सिद्धांत के साथ समझौता करना पड़ा था।
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प्रश्न-4. प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय क्रांति हेतु मार्ग प्रशस्त किया कैसे?
उत्तर:- प्रथम विश्वयुद्ध में रूस का पराजय इसलिए क्रांति हेतु मार्ग प्रशस्त किया क्योंकि प्रथम विश्वयुद्ध में रूस का पराजय होने पर रूस की जनता शासक को अयोग्य मानने लगे। पराजय होने से रूस के सम्मान को भी गहरा चोट लगा और वहाँ का जनता आक्रोशित हो उठा।
- दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :- (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें )
प्रश्न-1. रूसी क्रांति के कारणों की विवेचना करें।
उत्तर:- रूसी क्रांति के निम्नलिखित कारण था।
(i) जार का निरंकुश एवं अयोग्य शासन:- जार का शासन अफसरशाही था जो जनताओं के समस्याओं को समाधान नहीं कर पा रहा था।
(ii) किसानों की दयनीय स्थिति:- कृषि दास्तां समाप्त होने के बाद भी किसानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं होना ।
(iii) मजदूरों की दयनीय स्थिति:- इन्हें अधिक काम करना पड़ता था परंतु उनकी मजदूरी कम थी।
(iv) औद्योगीकरण की समस्या – राष्ट्रीय पूंजी के अभाव में यहां औद्योगीकरण नहीं हो पाना ।
(v) रूसीकरण की नीति :- इस नीति से अल्पसंख्यक समूह का जार के प्रति आक्रोशित होना।
(vi) मार्क्सवाद का प्रभाव:- मार्क्सवादी विचारधाराओं से रूस के मजदूरों एवं किसानों का क्रांति के लिए एकजुट होना ।
(vii) विदेशी घटनाओं का प्रभाव:- क्रीमिया तथा जापान क साथ युद्ध में रूस के हारने से जनता का असंतोष होना ।
(viii) रूस का पराजय- प्रथम विश्वयुद्ध में रूस का पराजय होने से लोगों का आक्रोशित होना।
प्रश्न-2. नई आर्थिक नीति क्या है?
उत्तर:- लेनिन द्वारा नई आर्थिक नीति की घोषणा 1921 ई0 में किया गया था। जिसमें निम्नलिखित मुख्य बातें शामिल है।
(i) किसानों से अनाज लेने के स्थान पर एक निश्चित कर (टैक्स) लगाया गया।
(ii) 20 से कम कर्मचारियों वाले उद्योगों को व्यक्तिगत रूप से चलाने का अधिकार मिल गया।
(iii) यह सिद्धांत जारी रखा गया कि जमीन राज्य की है फिर भी इसे किसान ही प्रयोग में लाएगा।
(iv) उद्योगों का विकेंद्रीकरण कर दिया गया। निर्णय तथा क्रियान्वयन के बारे में विभिन्न इकाइयों को काफी छूट दी गई।
(v) विदेशी पूंजी भी सीमित तौर पर आमंत्रित की गई।
(vi) व्यक्तिगत संपत्ति और जीवन बीमा भी राजकीय एजेंसी द्वारा शुरू किया गया।
(vii) विभिन्न स्तर पर बैंक खोले गए।
(viii) ट्रेड यूनियन की अनिवार्य सदस्यता समाप्त कर दी गई।
प्रश्न-3. रूसी क्रांति के प्रभावों की विवेचना करें।
उत्तर:- रूसी क्रांति के प्रभाव:–
(i) रूसी क्रांति के बाद श्रमिक एवं सर्वहारा वर्ग की सत्ता रूस में स्थापित हो गई तथा इसने अन्य क्षेत्रों में भी आंदोलन को प्रोत्साहन दिया।
(ii) विश्व दो विचारधाराओं में विभाजित हो गया:- साम्यवादी विश्व एवं पूँजीवाद विश्व। यूरोप भी दो क्षेत्रों में विभाजित हो गया:- पूर्वी यूरोप, पश्चिमी यूरोप।
(iii) पूँजीवादी विश्व और सोवियत रूस के बीच शीत युद्ध की शुरुआत हुई। जिससे दोनों वर्गों में शास्त्रों को बनाने का होर चलती रही।
(iv) एक नवीन आर्थिक मॉडल विश्व के सामने आया। इस मॉडल को परिवर्तित कर पूंजीवादी देशों ने भी अपना लिया।
(v) इस क्रांति की सफलता ने एशिया और अफ्रीका देशों को उपनिवेश से छुटकारा पाने के लिए भी प्रोत्साहन दिया।
प्रश्न-4. कार्ल मार्क्स की जीवनी एवं सिद्धांतों का वर्णन करें।
उत्तर:- कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 को हुआ था। इनका जन्म जर्मनी में राइन प्रांत के ट्रियर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था। कार्ल मार्क्स ने बोन विश्वविद्यालय में विधि की शिक्षा ग्रहण किया लेकिन आगे पढ़ने के लिए वे बर्लिन विश्वविद्यालय चले गए। उन्होंने अपने बचपन की मित्र “जेनी” से विवाह किया। मार्क्स ने
एंजेल्स के साथ मिलकर 1848 ई0 में एक साम्यवादी घोषणा पत्र को प्रकाशित किया जिसे आधुनिक समाजवादी का जनक कहा जाता है। उन्होंने 1867 ई0 में “दास कैपिटल” नामक पुस्तक को लिखा जिसे समाजवादियों की बाईबिल भी कहा जाता है।
कार्ल मार्क्स के सिद्धांत
(i) द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत।
(ii) वर्ग संघर्ष का सिद्धांत ।
(iii) इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या ।
(iv) मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
(v) राज्यहीन एवं वर्गहीन समाज की स्थापना
प्रश्न-5. यूटोपियन समाजवादियों के विचारों का वर्णन करें।
उत्तर:- यूटोपियन(स्वप्नदर्शी) समाजवादी आदर्शवादी थे। प्रथम फ्रांसीसी यूटोपियन समाजवादी विचारक सेंट साइमन का मानना था कि राज्य एवं समाज को इस ढंग से
संगठित करना चाहिए कि लोग एक दूसरे का शोषण करने के बदले मिलजुल कर प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करें। समाज को निर्धन वर्ग के उत्थान के लिए काम करना चाहिए। इसने नारा दिया- प्रत्येक को उनकी क्षमता के अनुसार तथा प्रत्येक को उसके कार्य के अनुसार। एक अन्य महत्वपूर्ण यूटोपियन समाजवादी विचारक चार्ल्स फौरियर आधुनिक औद्योगिकवाद का विरोधी था। इनका मानना था कि श्रमिकों को छोटे नगर तथा कस्बों में काम करना चाहिए। एक अन्य यूटोपियन समाजवादी लुई ब्लां था। उसका मानना था कि आर्थिक सुधार को प्रभावशाली बनाने के लिए पहले राजनीतिक सुधार आवश्यक हैं।
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